Saturday, August 25, 2012

दूर शून्य में कहीं

                                                     


तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं


सब तो हैं  पर कुछ भी नहीं
समय की धार में  मैंने
खोया हैं तुमको यहीं कहीं
लौटा भी था मैं वहां
पर न जाने तुम गए कहा
यूं तो कट जायेगा मेरा ये सफ़र
पर भूल जाऊं तुमको ये होगा नहीं

तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं

तेरी  यादो में गुजारी शामो के लम्हे
आज भी संग  तो हैं मेरे
पर कब तक उन यादो और लम्हों पे
कविताये लिखता रहूँगा  मैं तेरे
जिंदगी का फलसफा यूं तो कुछ नहीं
पर तुम्हारी यादो के वो चाँद लम्हे
मेरे दिल से निकल जाये ये होगा नहीं

तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं

मेरी चाहतो को तुम भूलकर
मुस्कुरा रही होगी और कहीं पर
मेरे अरमानो को मिटा कर
किसी के पुरे कर रही होगी कहीं पर
यूं तो तुम्हारी ये फितरत  ही होगी
पर मेरी जिनदगी का सिला तो कुछ भी नहीं

तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं


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