Saturday, August 25, 2012

वो लम्हें




वो कुछ चंद लम्हें,                                   
जो हैं मैंने समेटे,
जी चूका हूँ जिनको,
कई रातों के अँधेरे में,

 किताब के पन्नो में दबी
उस तस्वीर की  एक सदी,
और वो चंद लम्हे
जो अब भी हैं संग मेरे, 
उन झुकती हुई पलकों से
तुम्हारा यु मुझे देखना,
मेरे पास आकर तुम्हारी
साँसों का यूँ बेचैन होना,
तुम्हारी आँखों में मेरे
सपनो का बेकरार होना,
सब कुछ हूँ मैं समेटे
उन चंद लम्हों में, 
जी चूका हूँ जिनको
कई रातों के अँधेरे में,


उन लम्हों की बात और
ये तन्हाई की लम्बी रात,
तुम्हरी याद की तपिश में
जलते हुए मेरे जज्बात,
तुम्हारी तस्वीर से लिपटे हुए
तुम्हारी यादों का  साथ
चाँद की रौशनी सा मन
ओंस की बूंदों से हो नम,
उन चाँद लम्हों का सिलसिला
यादों के भवर में,  
तैरता रहा हर कदम.
उन चंद लम्हों में, 
जी चूका हूँ जिनको
कई रातों के अँधेरे में,

 वो ही तो कुछ चंद लम्हें हैं
जो मैंने तुम्हारी यादों में समेटे हैं,
कुछ तो हैं उन चाँद लम्हों में
जीता हूँ जिनको कई रातों के अँधेरे में

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