Saturday, August 25, 2012

राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पे , एक दिया नया जलाएंगे




राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पे, एक दिया  नया जलाएंगे  
नव जीवन को सृजन कर,नूतन भारत जन्मायेंगे                                                 

भूखे नंगे जन मानस को, हाँ मैंने अब तक देखा हैं
पंथ संप्रदाय पे लड़ कर , लोगो को मरते देखा हैं
क्या ऐसे जन मानस में, नव चेतना हम लायेंगे 
राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पे,  एक दिया  नया जलाएंगे  

नारी का ता हाल न पूछो,  दासी सी किस्मत पाई हैं
लूट ते चीर की पीड़ा  को,  वो हर दम  सहती आई हैं 
पंथ, संप्रदाय, और धर्मग्रंथो,  ने  उसका उपहास उड़ाया हैं
क्या ऐसे दुर्बल  नारी के दम पे,  क्रांति नयी  हम ला पायंगे 
राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पे,  एक दिया  नया जलाएंगे  

रुदिवादिता, आडम्बर को,  हमने सर्वदा गले लगाया हैं
भाग्य, कुंडली , ज्योतिष को,  हमने गौरव से अपनाया हैं 
वैज्ञानिक  चिंतन का हमने,  जमके उपहास उडाया हैं
जन- जन   में भद करा  के,  सामंती सोच को पनपाया हैं 
क्या ऐसे समाज में हम,  नव जाग्रति कभी ला  पायंगे 
राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पे ,  एक दिया  नया जलाएंगे  

गंगा के कल कल, अविरल जल से  
अभिषेक. आचमन करना हैं
जन, गण, मन में, नव प्राण फूँक के 
भारत को अब निर्मित करना हैं
जाती, पंथ से अब उपर उठ कर
अब राष्ट्र धर्म अपनाना हैं
मानवता, करुणा की खातिर
नयी क्रांति हम लायेंगे

राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पे ,एक दिया  नया जलाएंगे  
नव जीवन को सृजन कर , हाँ नूतन भारत जन्मायेंगे 

मैं दलित हूँ


 
                             

राजा, पंडित, पुजारियों  ने मुझको अछूत बतलाया हैं
इनका कचड़ा मैं ढोता, फिर मेरा क्यूँ उपहास उड़ाया हैं 
कुत्ते को तो पूरी रोटी दे देते, मुझको आधा खिलवाया हैं
सड़क, चौराहे, नाली, कुड़ो में घुसकर,  इनको  स्वच्छ बनवाया हैं
इनके धर्म,  धर्मग्रंथो ने फिर भी, मुझको खुल के नीच बताया हैं

मेरा तो परछाई पड़ने से, इनके धर्म भ्रष्ट हो जाते हैं
इनके माँ बापों का मैला मुझसे फिर क्यूँ  उठवाते हैं 
गाय को हाय ये माँ माने, मुझको पशुता से जुड़वाते  हैं
पत्थरो  को भी देव बनाये, मुझको कोड़ो से पिटवाते हैं
वृच्छो को भी ये पूजते , मुझको संवेदन शुन्य बताते हैं
मेरी व्यथा को ना माने, अपनी व्यथा पर  मुझको तड़पाते   हैं

मानव को  तो ये  मानव ना माने, मानवता का पाठ हमे पढाते हैं
हमे असभ्य ये कहते,  अपने को सभ्यता का हिस्सा बतलाते  हैं
खुद को सर्व श्रेष्ठ मानते, मेरा मान मर्दन क्यूँ फिर करवाते  हैं
मैं दलित कुचला, शोषित , अब तक मुझको धिक्कारा हैं
भारत के गौरव की बाते करते, मुझको क्यूँ  पीड़ा पहुचाया हैं

आधी रोटी मैं खाता, आधा पर  मेरा पेट नहीं
पूरी रोटी  मैंने जो खाली, दुनिया की फिर खैर नहीं
मान मेरा एहसान की, मैंने तेरा अब तक  काम  किया
राजा पंडित का मैंने फिर भी हर दम  सम्मान दिया 
धैर्य,सयम स्वभाव हैं मेरा, मैं तो  मजबूर नहीं 
तेरी सेवा मैं करता, मैं अब तो कमजोर नहीं
उठ, जाग गया मैं भी  देखो , मुझको अब सम्मान चाहिए
गाये पत्थरो, वृच्छो को पूजो, मुझको भी मेरा गौरव चाहिए

नारी सम्मानित होनी अब चाहिए



ममता, करुना की प्रतिमूर्ति 
नारी को गौरव अब चाहिए
रुदिवादिता, आडम्बर को ठुकराकर 
नारी सम्मानित होनी अब चाहिए

पुत्र की अंधी अभिलाषा ने
पुत्री को बोझ बनाया हैं
नारी ने खुद का मान गिराकर 
नारी का अवमूल्यन करवाया हैं
नारी का अब मूल्य बढाकर
उसे अमूल्य  बनवाना चाहिए
रुदिवादिता, आडम्बर को ठुकराकर 
नारी सम्मानित होनी अब चाहिए

संत, महात्मा, और पगाम्बरो ने 
नारी को हरदम  ठुकराया हैं
नौ माह कोख में उसके पलके
फिर क्यों जीवन को अपनाया हैं
नारी की उत्थान की खातिर
धर्मग्रंथो को अब जलना चाहिए
रुदिवादिता, आडम्बर को ठुकराकर 
नारी सम्मानित होनी अब चाहिए

पंडित, मोमिन, पादरियों ने
नारी को नरक बताया हैं
पाप, पुण्य के ठेकेदारों ने
उसका खुल के  उपहास उड़ाया हैं
नारी का यह मन मर्दन
अब तो रुकना चाहिए
रुदिवादिता, आडम्बर को ठुकराकर 
नारी सम्मानित होनी अब चाहिए

उठ, जाग, तोड़ दे बंधन को
खड्ग, कृपान संग दुःख क्रंदन को
देख , समझ, कर क्रांति तू
लड़ना तुझको अब चाहिए 
पीड़ा  को सहने की तो शक्ति
तुझसे ही पुरुषो को चाहिए 
दिया जनम पौरुष को तुने 
निर्बलता तेरी पहचान अब   
फिर से  नहीं बननी चाहिए

ममता, करुना की प्रतिमूर्ति 
नारी को गौरव अब चाहिए
रुदिवादिता, आडम्बर को ठुकराकर 
नारी सम्मानित होनी अब  चाहिए

अपना आखिरी अलविदा कह दिया



आज मैंने उनको अलविदा कह  दिया,
हंस  के  आंसुवो  से  जुदा  कर  दिया ,
ज़िन्दगी  के  इस  मुकाम  पे  आके ,
हमने  उस  मुकाम  को  अलविदा  कह  दिया, 

किसी  के  प्यार  ने  हमे  प्यारा  बना  दिया ,
मुझे  मुझसे  ही  को  मिला  कर  जीना  सिखा  दिया, 
यूँ  तो  हम  राह  के  पत्थर  थे ,
तराश  कर  मुझे  उसने , अपना  खुदा  बना  दिया ,

दे  ना  सके  उसको   हम ,
जो  उसने  हंस  के  हमे  दे  दिया ,
प्यार  की  थोड़ी  सी  ही  उम्र  में ,
उसने  उम्र  भर  का  प्यार  दे  दिया, 
यूँ  तो  वो  रात  की  तन्हाई  में  रोते  थे  अक्सर ,
पर  क्यूँ  मुझे  रोकर  मुस्कुराना  सिखा  दिया ,

हम  चले  गए  तुम्हे  छोड़   कर ,
तुम्हारे  सपनो  को  यूँ  मिटा  दिया, 
रात  के  अँधेरे   में  अब ,
फिर  से  हमने  अँधेरा  जगा  दिया ,
जो  दिया  तुमने  जलाया  था ,
आज  उसी  को  हमने  बुझा  दिया ,
और  आज  हंस  कर  मैंने  तुम्हे ,
अपना  आखिरी  अलविदा  कह  दिया,

ज़िन्दगी


किताब  में  रखी  हुई  तस्वीरे 
मुट्ठी  में  बंद  तकदीरे 
नहीं  बदलती  हैं  रोने  से 
आस  का  एक  दिया  जलाकर 
किसी  एक  को  अपना  बनाकर 
फिर  देखो  जिंदगी  
तुमसे  भी  मिलेगी  मुस्कुराकर 

दूर शून्य में कहीं

                                                     


तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं


सब तो हैं  पर कुछ भी नहीं
समय की धार में  मैंने
खोया हैं तुमको यहीं कहीं
लौटा भी था मैं वहां
पर न जाने तुम गए कहा
यूं तो कट जायेगा मेरा ये सफ़र
पर भूल जाऊं तुमको ये होगा नहीं

तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं

तेरी  यादो में गुजारी शामो के लम्हे
आज भी संग  तो हैं मेरे
पर कब तक उन यादो और लम्हों पे
कविताये लिखता रहूँगा  मैं तेरे
जिंदगी का फलसफा यूं तो कुछ नहीं
पर तुम्हारी यादो के वो चाँद लम्हे
मेरे दिल से निकल जाये ये होगा नहीं

तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं

मेरी चाहतो को तुम भूलकर
मुस्कुरा रही होगी और कहीं पर
मेरे अरमानो को मिटा कर
किसी के पुरे कर रही होगी कहीं पर
यूं तो तुम्हारी ये फितरत  ही होगी
पर मेरी जिनदगी का सिला तो कुछ भी नहीं

तुम बिन ये जिंदगी
और मेरी ये त्रिश्नागी
दोनों जलते हैं
दूर  शून्य में  कहीं


वो लम्हें




वो कुछ चंद लम्हें,                                   
जो हैं मैंने समेटे,
जी चूका हूँ जिनको,
कई रातों के अँधेरे में,

 किताब के पन्नो में दबी
उस तस्वीर की  एक सदी,
और वो चंद लम्हे
जो अब भी हैं संग मेरे, 
उन झुकती हुई पलकों से
तुम्हारा यु मुझे देखना,
मेरे पास आकर तुम्हारी
साँसों का यूँ बेचैन होना,
तुम्हारी आँखों में मेरे
सपनो का बेकरार होना,
सब कुछ हूँ मैं समेटे
उन चंद लम्हों में, 
जी चूका हूँ जिनको
कई रातों के अँधेरे में,


उन लम्हों की बात और
ये तन्हाई की लम्बी रात,
तुम्हरी याद की तपिश में
जलते हुए मेरे जज्बात,
तुम्हारी तस्वीर से लिपटे हुए
तुम्हारी यादों का  साथ
चाँद की रौशनी सा मन
ओंस की बूंदों से हो नम,
उन चाँद लम्हों का सिलसिला
यादों के भवर में,  
तैरता रहा हर कदम.
उन चंद लम्हों में, 
जी चूका हूँ जिनको
कई रातों के अँधेरे में,

 वो ही तो कुछ चंद लम्हें हैं
जो मैंने तुम्हारी यादों में समेटे हैं,
कुछ तो हैं उन चाँद लम्हों में
जीता हूँ जिनको कई रातों के अँधेरे में

मेरी खता : कभी तुमने कहा था


हम चलेंगे एक साथ          
कभी तुमने कहा था
न होंगे हम जुदा
कभी तुमने ही कहा था


तुमने ही तो कहा था
हाँ तुमने ही कहा था
तुम अद्धोरी,  बिन मेरे,
मैं अधूरा बिन तेरे,
साँसों का चलना, 
दिन का गुजरना,
दिल का धडकना, 
मेरे सपने में वो,
तुम्हारा  रहना,
तुमने ही तो सब कहा था,


तुमने ही तो कहा था
 और मैं सब सुन रहा था
लेकिन फिर एक दिन, ऐसा भी आया
तुम किसी मोड़ से,  बने किसी और का हम साया.


तुमने ये तो नहीं कहा था
कहने सुनने की तुम्हे तो आदत थी
मैं तुम्हे सुनता ही रह गया
और शायद यही मेरी खता थी

इस शाम ने मुझे क्यों बुलाया



फिर एक शाम ने मुझे आवाज़ दी,                                                      
फिर से उस दर्द ने मुझे पुकारा.
कई मोड़ो से निकल गुजरा मैं,
बहुत पीचे था वो किनारा,

वो तन्हाई ,वो तुम्हारे गम का साथ
वो रात भर तुम्हारी यादो की बात,
सबकुछ तो था तुम्हारी चाह में
फिर भी भटक गया मैं क्यों राह में

इस शाम ने मुझे क्यों बुलाया
उस शाम के दर्द से क्यों मिलाया,
शाम तो रोज़ आती हैं मगर
पर इस शाम ने मुझे क्यों रुलाया

आशिक हमे बना दिया


मुल्क पे मरना तो हम भी चाहते थे 
उनकी आरज़ू ने दीवाना हमे बना दिया
सरहद पे शहादत हम भी चाहते थे 
उसकी एक नज़र ने घायल हमे बना दिया
मय में डूब कर  मैं  मैं  न रहा 
वतन पे मरने का सपना भी ना रहा
इरादतन कुछ भी नहीं था  , 
पर मेरा इरादा  उनको बना दिया 
वो कहते हैं की हम खो गए कही
पर मेरी मंजिल उनको बना दिया
वतन पे मिटने का आखिरी मौका
हमने यूँ ही फिर से क्यूँ  गवां दिया
अब सरफ़रोश  ना बन सकंगे  हम
और उसने आशिक हमे बना दिया 
उनकी आरज़ू ने दीवाना हमे बना दिया